Real Story KGF Movie in Hindi | Kolar Gold Fields in HIndi

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दोस्तो KGF यानी की Kolar Gold Fields एक समय भारत की सबसे बड़ी सोने की खदान हुआ करती थी। जिसके अंदर से 900 टन से भी ज्यादा सोना निकाला जा चुका है। आपको जानकर हैरानी होगी की भारत का 95 प्रतिशत से भी ज्यादा सोना इस अकेली खदान से ही निकाला जाता था। और तब भारत को दूसरे देशों से सोना इंपोर्ट करने तक की जरूरत भी नहीं पड़ती थी। लेकिन इस समय हाल यह है कि यह खदान बंद पड़ी हुई है। अब ऐसे सवाल तो उठता ही है कि इतना सोने उगलने वाली ये खदान आखिर बंद क्यों की गई। साथ ही अंग्रेजो के साथ इसका क्या कनेक्शन है। अब आज के इस लेख में हम न सिर्फ हम इन सवालों का जवाब देंगे। बल्कि साथ ही इस गोल्ड माइन के सुनहरे इतिहास के बारे में भी बताएंगे।

KGF यानी कोलार कहां स्थित है(Kolar Gold Fields)

दोस्तो Kolar Gold Fields कर्नाटक राज्य के डिस्ट्रिक्ट में आने वाला एक माइनिंग रीजन यानी की खनन क्षेत्र है। जो की Kolar शहर से 30 किलोमीटर और कर्नाटक की राजधानी बैंगलोर से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। और एक माइनिंग रीजन होने के साथ ही यह एक टाउनशिप भी है। जहा पर आज 2 लाख 60 हजार लोगो की आबादी रहती है। और दोस्तो ये सभी वही लोग है। जिनके पूर्वज दशकों पहले सोने की खदान में काम किया करते थे।

साल 2018 से पहले इस खदान के बारे में जानना तो दूर लोगो ने इसका नाम भी कभी नहीं सुना था। लेकिन 2018 में आती कन्नड़ फिल्म KGF की वजह से इस खदान का नाम पहली बार लोगो की जुबान पर आया था। हालांकि अब कहा तो यह जाता है की फिल्म की कहानी पूरी तरह से फ्रिक्शनल है। जिसका KGF के इतिहास से कोई भी लेना देना नही हैं। लेकिन दोस्तो भारत के इस गोल्ड माइन का इतिहास बड़ा ही सुहाना है। और इसके बारे में जानकर आपको मजा भी आने वाला है।

बताया जाता है की इस खदान में सोने की खोज किंगडम ऑफ महसूर के समय से ही शुरू हो गई थी। लेकिन तब टेक्नोलॉजी ने इतनी तरक्की नहीं की थी। कि माइनिंग का काम बहुत बड़े सत्तर पर किया जा सके। और दोस्तो सही मायनो में देखे तो बड़े सत्तर पर से इस खदान से सोना निकालने का काम ब्रिटिश राज के दौरान ही शुरू हुआ था।

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किस कम्पनी ने इसकी खुदाई कार्य का जिम्मा लिया?

अब भारत में ब्रिटिश राज शुरू होने से पहले भी इस जगह के अंदर सोना होने की खबरे छपती रही थी। और यहा रहने वाले लोग अक्सर यह दावा करते थे कि यहां की जमीन के नीचे सोना मौजूद है। लेकिन उस समय टेक्नोलॉजी और संसाधनों के अभाव में यहां पर माइनिंग का काम शुरू नहीं किया जा सका। हालांकि भारत में ब्रिटिश राज आने के बाद से सन 1871 में माइकल लावेल नाम के एक रिटायर ब्रिटिश फोजी को यहां सोने होने की उन रिपोर्ट के बारे में पता चला। जो कि 19वी सदी के शुरुआत में छापी गई थी। और ये रिपोर्ट पढ़कर ही माइकल के दिमाग में यह ख्याल आया कि क्यों न इस जगह पर गोल्ड माइनिंग की जाए। और फिर इसी सोच के साथ ही माइकल ने कुछ सालो तक खुदाई और सर्वे करवाए।

जिसमे कि वो इस जगह पर सोना खोजने पर कामयाब रहे थे। और फिर इसके बाद साल 1875 में उन्होंने यह माइनिंग करने के लिए सरकार की भी परमिशन हासिल कर ली। अब क्योंकि Kolar Gold Fields एक बड़ा माइनिंग रीजन था। और माइकल के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वो अपने अकेले के दम पर इतने बड़े माइनिंग ऑपरेशन को अंजाम दे सके। इसलिए उन्होने इस काम के लिए इन्वेस्टर खोजना शुरू कर दिया और इस तरह से KGF को माइनिंग का यह काम John Taylor And Sons नाम की एक ब्रिटिश कम्पनी के हाथो में आ गया।

जिन्होंने साल 1880 में माइनिंग ऑपरेशन को अंडर में ले लिया। और इस कंपनी के आते ही यहां माइनिंग का काम बड़े सत्तर पर किया जाने लगा। और दोस्तो बताया जाता है कि शुरुआत में मजदूर यहां पे बहुत खराब कंडीशन में काम किया करते थे। क्योंकि उस समय माइनिंग के लिए मशीनरी तो दूर बिजली तक उपलब्ध नहीं हुआ करती थी। और यही वजह है कि सभी काम मजदूर अपने हाथो से ही किया करते थे।

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दोस्तो उस समय इस खदान के अंदर अक्सर बहुत सारे हादसे हुए भी देखे जा सकते थे। जिसमे कि एक साथ ही बहुत सारे मजदूरों को अपनी जान गवानी पड़ती थी और एक सरकारी आंकड़े के अनुसार 120 साल तक चली इस माइनिंग में लगभग 6000 मजदूरों ने अपनी जान गंवाई थी। अब यू तो John Taylor And Sons कंपनी के आने के बाद से यहां पर माइनिंग का काम बहुत तेज रफ्तार से होने लगा था लेकिन कम्पनी अभी भी इस रफ्तार से संतुष्ट नहीं थी। और फिर काम की रफ्तार को और भी ज्यादा बढाने के लिए साल 1890 में कंपनी द्वारा यहां उस समय की सबसे आधुनिक मशीनें लगाई गई।

और दोस्तो अंग्रेजो के द्वारा लगाई गई यह मशीनें इतनी ज्यादा एडवांस थी यहां पर अगले सो सालो यानी की 1990 तक इन्ही मशीनों से ही माइनिंग की जाती रही। हालांकि यह मशीन लग जाने के बाद से कम्पनी को बिजली की भी जरूरत महसूस हुई। क्योंकि इन माइंस के अंदर बहुत ही ज्यादा अंधेरा हुआ करता था। और फिर बिजली की जरूरत को पूरा करने के लिए भारत के अंदर अपने देश का पहला हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट लगाया गया। जिसे की हम कावेरी इलेक्ट्रिक पावर प्लांट के नाम से जानते है।

यानी की जिस समय दुनिया के ज्यादातर हिस्सो में बिजली पहुंच भी नही पाई थी उस समय Kolar Gold Fields पूरी तरह से इलेक्ट्रिक हो गया था। और इतना ही नहीं माइनिंग मशीनों को मिट्टी छाने के लिए जिस पानी की जरूरत पड़ती थी। उस जरूरत को पूरा करने के लिए Kolar Gold Fields के बेतमंगला टाउन के अंदर एक बहुत बड़ा आर्टिफिशियल झील भी बनाया गया। और दोस्तो ये सभी जरुरते पूरा करते करते साल 1902 आ गया था। और अब KGF माइन भारत का अकेले ही 95 प्रतिशत से भी ज्यादा सोना प्रोड्यूस करने लगी थी।

क्यों इस शहर को मिनी इंग्लैंड कहा जाने लगा?

दोस्तो प्रोडक्शन बढ़ने के साथ ही इस इलाके की तरक्की भी काफी हो गई थी। इस माइन के अंदर जो ब्रिटिश ऑफिसर बड़े औधे पर काम करते थे। उन्होंने अपने रहने के लिए यहां पर घर बनवाने शुरू कर दिए। और इस तरह से देखते ही देखते यह इलाका एक बड़े शहर में तब्दील हो गया। और यहां पर उस समय बड़े बड़े पक्के मकान, हॉस्पिटल, क्लब और गोल्फ कोर्स जैसी बहुत सारी चीजे बनाई गई। यहां तक कि इस शहर को उस समय मिनी इंग्लैंड तक कहा जाने लगा। हालांकि इस शहर में यहां नजर आने वाले ज्यादातर सुख सुविधाएं सिर्फ उन ब्रिटिश ऑफिसर और उनकी फैमिली मेंबर्स के लिए होती थी। जो की माइंस के अंदर बड़े ओहदे पर काम करते थे। जबकि खदान में मजदूरी करने वाले भारतीय लोगो को बहुत ज्यादा सुविधाएं नहीं दी जाती थी।

तो दोस्तो समय बीतने के साथ ही John Taylor And Sons के द्वारा सन 1880 में शुरू किया गया यह माइनिंग का काम लगभग 76 सालो तक इसी तरह से सफलता पूर्वक चलता रहा। यहां तक की देश के आजाद होने जाने के नो साल बाद तक भी KGF में माइनिंग का काम इसी ब्रिटिश कम्पनी के ही अंडर में रहा था लेकिन साल 1956 में यहां को राज्य सरकार ने इस माइन को अपने अंडर में ले लिया।

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इसके बाद से साल 1972 में भारत सरकार ने BGML यानी की भारत गोल्ड माइन लिमिटेड नाम का एक पीएसओ बनाया। जिसने की इस खदान और यहां पर होने वाली माइनिंग के काम को अपने नियंत्रण में ले लिया। यानी की 1972 में यह माइनिंग रीजन पूरी तरह से केंद्र सरकार के अंडर में आ गया। हालांकि दोस्तो शुरुआत में जब यह माइनिंग का काम स्टार्ट हुआ था तब इस जगह की ऊपरी सतहों में ही सोना मिल जाता था। लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे ही यह माइन गहरी होती गई। जब तक यह माइन भारत सरकार के हाथो में आई तब तक इसकी गहराई करीब करीब 3 किलोमीटर तक पहुंच गई थी। जिसके चलते यह उस समय दुनिया की दूसरी सबसे गहरी माइन कहलाई जाया करती थी।

और दोस्तो इतनी ज्यादा गहराई में इंसानों के लिए काम करना बहुत ही मुश्किल हो जाता था। क्योंकि इस गहराई में तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस और ह्यूमिडिटी लेवल लगभग 95 प्रतिशत होता था। और यह भी एक वजह थी यहां पर काम करने वाले मजदूर अक्सर मौत का शिकार हो जाते थे। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दे साल 1880 में शुरू हुआ यह माइनिंग का काम 120 साल तक लगातार चलने के बाद से 2001 में हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। और इन 120 सालो में इन गोल्ड माइंस से लगभग 900 टन से भी ज्यादा सोना निकाला गया था।

आखिर क्यों KGF को हमेशा के लिए बंद करना पड़ा?

अब ऐसे में बहुत से लोगो के मन में यह सवाल आता है की इतने लंबे समय तक इतना अधिक मात्रा में सोना देने वाली इस गोल्ड माइन को आखिर बंद क्यों किया गया। असल में दोस्तो इस माइन के बंद होने का मुख्य कारण यह था कि आखिर इन सालो में से निकलने वाली सोने की मात्रा काफी ज्यादा हो गई थी। शुरुआत में यहां खोदे जाने वाले प्रति एक टन अयस्क में सोने की मात्रा 45ग्राम के आसपास होती थी। लेकिन 1990 के बाद से यह मात्रा सिर्फ 3 ग्राम प्रति टन रह गई।

और इतना कम सोना निकलने की वजह से BGML को लगातार नुकसान हो रहा था। और साथ ही खदान के बेहद गहरे हो जाने की वजह से प्रोडक्शन कास्ट में भी लगातार वृद्धि हो रही थी। और प्रॉफिट दिन प्रतिदिन घटता जा रहा था। और इन्ही सब कारणों से ही इस माइन को 28 फरवरी 2001 के दिन हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। और दोस्तो इस खदान में माइनिंग बंद करने का यह फैसला काफी अचानक लिया गया था।

जिसकी वजह से यहां पर रहने वाले लोग की जिंदगी पर इसका असर काफी बुरा पड़ा था। क्योंकि जो इन खदानों में काम करते थे वो लोग रातों रात बेरोजगार हो गए थे और माइनिंग बंद होने के बाद से इस जगह में बिजली पानी की आपूर्ति भी सही ढंग से मिलनी बंद हो गई थी। साथ ही माइनिंग से निकलने वाले वेस्ट ने इस जगह के वातावरण को भी काफी नुकसान पहुंचाया। जिसकी वजह से यहां पर रहने वाले लोगो को बहुत सी हेल्थ इश्यू का सामना करना पड़ा था। और दोस्तो एक समय जो जगह अपनी खूबसूरती और सुख सुविधाओं और साफ वातावरण के लिए मिनी इंग्लैंड कह लाई जाती थी आज वही जगह देखने पर किसी नृग के जैसे भयानक नजर आती है।

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दोस्तो आपको KGF की स्टोरी के बारे में जानकर कैसा लगा मुझे कॉमेंट सेक्शन जरूर बताएगा और ऐसे ही Interesting Information के लिए हमारी साइट The Hindi Fact के Notification Bell पर किल्क कर लें ताकि आपको हमारे नये Fact का सबसे पहले Update मिल जाए। और आपका कुछ भी सवाल हो मुझे कॉमेंट करो उसका उत्तर आपको जरूर मिलेगा।

FAQ :

कोलार की खान कहां है?

कोलार ज़िला भारत के कर्नाटक राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय कोलार है। अपने सोने की खानों के लिये प्रसिद्ध यह जिला बंगलोर के उत्तर-पूर्व में है।

क्यों कोलार गोल्ड फील्ड्स को बंद कर दिया?

इस माइन के बंद होने का मुख्य कारण यह था कि आखिर इन सालो में से निकलने वाली सोने की मात्रा काफी ज्यादा हो गई थी। शुरुआत में यहां खोदे जाने वाले प्रति एक टन अयस्क में सोने की मात्रा 45ग्राम के आसपास होती थी। लेकिन 1990 के बाद से यह मात्रा सिर्फ 3 ग्राम प्रति टन रह गई।

कोलार की खान में क्या निकलता है?

सोना।


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