Real Story RRR Movie in Hindi | Real Story Sitarama Raju & Komaram Bheem

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दोस्तो जैसा कि आप जानते ही है कि इंडिया की most Awaited Film RRR  रिलीज हो चुकी है और लोगो के बीच इस फिल्म की दीवानगी इतनी ज्यादा है कि रिलीज होने के सिर्फ एक हफ्ते में इसका World Wide Box Office Collection 700 करोड़ के आंकड़े को भी पार कर चुका है और कमाई के मामले में ये फिल्म हर रोज एक नया रिकॉर्ड कायम कर रही है. हालांकि तीन चीजे जो इस फिल्म को सबसे ज्यादा खास बनाती है वो है S.S Rajamouli की डायरेक्शन जबरदस्त स्टार कास्ट और इस फिल्म को लाजवाब स्टोरी. जो कि एक रीयल लाइफ कैरेक्टर पर based हैं(Real Story RRR Movie in Hindi).

दरअसल इस फिल्म में NTR Junior और Ramcharan ने फ्रीडम फाइटर का किरदार निभाया है. दोस्तो आज के इस लेख में हम आपको RRR मूवी के रीयल कैरेक्टर के बारे में बताने वाले है. तो चलिए जानते है.

RRR फिल्म की असल कहानी(Real Story RRR Movie in Hindi)

alluri sitarama raju & komaram bheem story in hindi

दोस्तो Rise Roar Revolt यानी की RRR फिल्म की कहानी और रीयल स्टोरी कैरेक्टर Alluri Sitarama Raju और Komarama Bheem के बारे में है जो कि अपने समय के फ्रीडम फाइटर थे. फिल्म में Alluri Sitarama Raju का किरदार Ramcharan ने और Komarama Bheem का किरदार NTR Junior ने निभाया है तो चलिए फिर एक एक करके जानते है ये दोनो कोन थे और इनकी Real Story क्या है.

Alluri Sitarama Raju की कहानी(Story of Alluri Sitarama Raju)

Alluri Sitarama Raju ब्रिटिश इंडिया के Madras Presidency से तालुक रखते थे और इनकी ये कहानी साल 1982 में उस समय शुरू होती है जब ब्रिटिश राज ने Madras Forest Act को लागू किया था. इस Act के तहत वहा के local आदिवासी लोगो की जंगल में जाने पर पूरी तरह से बैन लगा दिया गया था.

दरअसल ये आदिवासी लोग खेती करने के लिए जमीन का इंतजाम हर साल जंगल के अलग अलग हिस्सों को जलाकर किया करते थे और खेती करने के इस ट्रेडिशनल तरीके को Podu कहा जाता था. लेकिन जब ये जंगल ब्रिटिश गवर्नमेंट के हाथो में आए तो फिर उन्होंने इसका इस्तेमाल Commercial Purpose के लिए करना शुरू कर दिया.

Alluri Sitarama का जन्म कब और हुआ?

अब दोस्तो अंग्रेजो को लगा कि आदिवासी लोग जंगलों को जलाकर उसका नुकसान कर रहे है तो इसीलिए उन्होंने आदिवासियों को जंगल से दूर रखने के लिए 1882 में Madras Forest Act को पास करवा लिया और दोस्तो इसी एक्ट के पास होने के 15 साल बाद 4 जुलाई 1897 के दिन Madras Presidency के मुगल्लू गांव में Alluri Sitarama Raju का जन्म हुआ था.

इनके पिता वेंकेट राम राजू एक प्रोफेशनल फोटोग्राफर और मां एक Housewife थी. अब ब्रिटिश सरकार के द्वारा पास किए गए Madras Forest Act की वजह से वहा के लोकल आदिवासी के लोगो में गुस्सा तो था लेकिन उस समय उनके हालात इतने खराब थे की वे चाहकर भी कुछ नही कर पाए.

सीताराम राजू अपने माता पिता से अंग्रेजो के जुल्म की इसी कहानी को सुनते हुए ही बड़े हुए थे और इसी के चलते उनके मन में बहुत ही छोटी उम्र से ही अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने की भावना पैदा हो गई थी. अब सीताराम राजू की उम्र जब 25 साल हुई तब उन्होंने अपने साथ कुछ लोगो को जोड़कर ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया जिसको Rampa Revolt नाम दिया गया.

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लड़ाई के लिए हथियार कहा से लाते थे?

इस लड़ाई के लिए जब उन्हे हथियारो की जरूरत पड़ती थी फिर वो और उनकी टीम अंग्रेजो के पुलिस स्टेशन पर छापा मारकर उनके हथियार लूट लेते थे. दरअसल वे अंग्रेजी पर हमला करके उनको पूर्वी घाट से भगाना चाहते थे और इस लड़ाई के दौरान सीतराम राजू ने बहुत सारे बड़े बड़े पुलिस स्टेशन पर छापे मारे थे. और हर बार छापा मारने के बाद से वो स्टेशन पर एक Letter छोड़ जाते थे. जिसमे टूटे हुए हर एक हथियार का पूरा हिसाब किताब लिखा होता था. साथ ही उस letter में यह भी लिखा होता था कि अगर दम है तो वे उन्हें रोककर दिखाए.

सीताराम राजू को गोली कैसे मारी गई?

अब जब भी ब्रिटिश पुलिस अपनी टीम को उन्हे पकड़ने के लिए भेजते थे तो फिर सीताराम राजू और उनके साथी उन पुलिस वालो को मौत के घाट उतार देते थे. ब्रिटिश सेना और सीताराम राजू के बीच यह लड़ाई क़रीब 2 साल तक चलती रही और आखिरकार 7 मई 1924 के दिन चिंतबल्ली के जंगलों में एक लड़ाई के दौरान ब्रिटिश सेना ने सीताराम राजू को घेर लिया.

ब्रिटिश सरकार उनकी मौत के जरिए अधिकारियों को यह मैसेज देना चाहते थे कि उनसे टकराने का अंजाम क्या होता है. इसीलिए उन्हें ग्रिफ्तार करके पास के एक गांव में लेके आए और फिर वहा पे उन्हे एक पेड़ से बांधकर लोगो की आंखों के सामने ही उन्हे गोली मार दी गई. खैर ये तो बात हुई फिल्म के एक किरदार Alluri Sitarama Raju की. चलिए अब हम फिल्म के दूसरे किरदार Komaram Bheem की कहानी को जानते है.

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Komaram Bheem की कहानी(Real Story of Komaram Bheem)

Komaram Bheem का जन्म 22 October 1900 के दिन तेलंगाना के संकल्पी गांव में रहने वाले गौंड जाति के एक परिवार में हुआ था. उस समय ब्रिटिश शासन के इस जनजाति के लोगो की हालत बहुत खराब थी. जिसके चलते Komaram Bheem बचपन में कोई भी शिक्षा हासिल भी कर पाए. उनका बचपन बड़ी ही मुश्किलों और दिक्कतों में गुजरा जहा उन्होंने अपने लोगो को पुलिस से लेकर जम्मीदारो तक के अत्याचारों का शिकार बनते देखा.

दरअसल उनकी जनजाति के लोग जंगल में Pondu खेती के जरिए जो भी फसल उगाते थे उसे हैदराबाद निजाम के लोग उसे यह कहकर छीन लेते थे कि उन्होंने जिस फसल को उगाया है वो फसल उनकी है ही नही और उन अत्यचारो के खिलाफ भीम के पिता ने जब आवाज उठानी चाही तो फिर उन ताकतवर लोगो ने उन्हे मौत की नींद सुला दी.

क्यों कोमाराम भीम को गांव छोड़कर जाना पड़ा?

दोस्तो फिर कुछ ऐसा ही एक अक्टूबर 1920 में गांव के लोग अपनी फसल की कटाई कर रहे थे. तभी वहा पर निजाम के पट्टेदार सिद्दीकी साहब और पटवारी लक्ष्मण राव उन्हे रोकने के लिए पहुंच गए. वे गौंड जनजाति के लोगो के साथ गालीगलोच और बतमीजी करने लगे. जिसकी वजह से देखते ही देखते यह मामला एक झगड़े में बदल गया और Komaram Bheem के हाथो सिद्दकी साहब का मडर हो गया. उस समय भीम को अपनी जान बचाने के लिए वहा से भागना पड़ा.

और फिर वह कुछ सालो तक अलग अलग जगहों पर अलग अलग तरह के काम जैसे असम में चाय की खेती और प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी करते रहे और फिर इसके बाद से जब यह मामला शांत हो गया तो वह जोडीघाट नाम के एक गांव में स्विफ्ट हो गए और इस गांव में इन्होंने आदिवासियों को इक्कठा किया और अपने उपर सदियों से हो रहे अत्यचारों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए कहा और इस तरह से भीम ने काफी सारे आदिवासी लोगो को अपने साथ जोड़कर हैदराबाद के निजाम और ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया और यह विद्रोह 1928 से 1940 तक चला.

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Komaram और उनके साथी कैसे मारे गए?

इस लड़ाई में उन्होंने छापा मार नीति अपनाकर निजाम और ब्रिटिश राज के लिए काम करने वाले जम्मीदारों को एक एक करके मारना शुरू कर दिया. अब निजाम को लगा की भीम की लीडरशिप में ये विद्रोह और भी ज्यादा बढ़ सकता है तो उन्होंने एक चाल अपनाई. उसने भीम के सामने एक ऑफर  रखा. जिसमे उसने बोला की वह आदिवासी लोगो को उनकी जमीन का पट्टा वापिस कर देगा और साथ ही खेती करने के लिए भीम को जमीन भी देगा.

लेकिन भीम ने निजाम के साथ कोई भी समझोता करने से साफ इंकार कर दिया और उसने उस लड़ाई को पहले की तरह ही जारी रखा. यह लड़ाई अगले 12 सालो तक युही चलती रही और फिर भीम निजाम के लिए बहुत बड़ा सर दर्द बन चुका था. इसीलिए निजाम ने भीम से छुटकारा पाने के लिए करीब 300 सिपाहियो को जोड़ीघाट भेजकर उनकी गोरीला आर्मी पर हमला करवा दिया और साथ ही निजाम के इन सिपाहियो के साथ लड़ते हुए भीम और उनके सभी साथी सितंबर 1940 में शहिद हो गए.

राजामौली ने RRR फिल्म का बताया सच

तो ये थी Alluri Sitarama Raju और Komaram Bheem की फ्रीडम फाइटर की रीयल कहानी. लेकिन S.S Rajamouli ने अपनी RRR फिल्म(True Story RRR Movie in Hindi) में इन फ्रीडम फाइटर की रीयल कहानी को नहीं दिखाया है. बल्कि उन्होंने अपनी फिल्म के लिए सिर्फ इन कैरेक्टर का ही इस्तेमाल किया जबकि इस फिल्म में जो कहानी दिखाई गई है वो पूरी तरह फ्रिक्शनल है.

दरअसल S.S Rajamouli को Alluri Sitarama Raju और Komaram Bheem की कहानी पहले से ही मालूम थी वो इन कैरेक्टर से काफी ज्यादा इंप्रेस हुए थे. जब इन दोनो कैरेक्टर पर काफी गहराई से रिसर्च हुई तो फिर उन्हे इनमे काफी सारी सिमिलेरिटी भी नजर आई और दोस्तो Rajamouli जी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था की सीताराम राजू और कोमाराम भीम के Freedom Struggle के विद्रोह की कहानी तो हर किसी को मालूम है.

लेकिन जब वे दोनो कुछ सालो के लिए अपने घर से दूर रहे तो फिर उस दौरान उनके साथ क्या हुआ इसके बारे में डिटेल्स और रिकॉर्ड किसी के पास नही है. अब rajamouli के दिमाग में यह ख्याल आया की उस समय में इन दोनो की मुलाकात एक दुसरे से हो जाती तो क्या होता और बस अपनी इसी कल्पना पर ही यह फिल्म बना डाली.

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